14.2.07

प्यार

प्यार
अंधेरे में
टिमटिमाती हुई
एक रोशनी है
जो इंसान को
अंधेरे से
कभी हारने नहीं देती ।

सीमा
१० जुलाई, १९९९

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6 टिप्‍पणियां:

Divine India ने कहा…

वह अनकहा है,
अनछुआ है,
पुण्य है और पुनीत भी,
प्रार्थना है और पूजा भी
समर्पण है हृदय इससे कम
कुछ भी नहीं…
थोड़े शब्दों का प्रयोग कर यह बताया की
प्रेम कितना शाश्वत है…।
धन्यवाद!!

Upasthit ने कहा…

main to ab tak yahi samajhta tha ki prem ke aage hi sab haare hain...3 panktiyon me kyaa kuch nahee samet liyaa apane...aur bhi bahut kuch bach bhee gaya..jo inhi me hi sametaa ja sakta tha..

Dr. Seema Kumar ने कहा…

Divine India , Upasthit :

धन्यवाद । जो महसूस किया, उसे शब्दों में ढ़ालने की कोशिश की है । प्रेम को शब्दों और परिभाषाओं में ढा़ल पाना मेरी समझ से तो संभव नहीं ।

उपस्थित : प्रेम के आगे हारे या प्रेम के साथ जीते, अपना-अपना नजरिया है शायद । कोई गिलास को आधा खाली कहता है तो कोई आधा भरा :) ।

Udan Tashtari ने कहा…

एक नाजुक और सुंदर रचना.

प्रवीण परिहार ने कहा…

लाख पते की बात है।
बहुत सुंदर रचना है, सीमा जी।

बेनामी ने कहा…

bahut achi rachna hai,lekin ek sawal puchhu prem aur aastha mein kya fark hai

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