अंत और अनंत क्या,
उर की अभिलाषा क्या ?
मन क्यों स्थिर नहीं,
जीवन की परिभाषा क्या ?
प्रश्न भी अनंत हैं
अनकहे हैं
जवाब कभी हैं ही नहीं,
कहीं अधूरे हैं ।
मौन लगता अचल है ।
बस अपनी
अंतर्रात्मा का
साथ ही चिरंतन है,
बाकी या तो इच्छा है
लालसा है
या न मिटने वाली चाह है ।
मोह क्या है,
माया है क्या ?
सत्य क्या है,
साया है क्या ?
फिर अनगिनत सवाल,
या तो असंख्य जवाब,
या फिर कोई भी नहीं
कहीं सिर्फ़ गति है
कोई ठहराव नहीं
और कहीं बस
ठहराव ही है
कोई गति, कोई हलचल नहीं ।
यह शब्द हैं
या भाव ?
या उलझन ?
अभिव्यक्ति की असमर्थता ?
- सीमा कुमार
३१ मार्च २००७
हिन्द युग्म पर यहाँ पूर्व-प्रकाशित
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2 टिप्पणियां:
waah शब्दों की kaareegaree से अपने क्या खूब rach दी है एक pyaree सी कविता .....
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