बादल का एक टुकड़ा आसमान में आकर
मेरी आँखों में अनंत आशाएँ दे गया
तो क्या हुआ जो बादल नहीं, बस आँखें बरसीं
- सीमा कुमार
२४ अगस्त '०६
24.8.06
11.8.06
एक और त्रिवेणी
विषय : गुरूर
एहसास तक नहीं था मुझे अपने होने का
नाज़ तुम्हारे साथ होने का जरूर था
तुम मेरे हुए, अपने आप पर गुरूर आ गया
सीमा
१२ अगस्त '०६
एहसास तक नहीं था मुझे अपने होने का
नाज़ तुम्हारे साथ होने का जरूर था
तुम मेरे हुए, अपने आप पर गुरूर आ गया
सीमा
१२ अगस्त '०६
8.8.06
त्रिवेणी
Orkut गुलज़ार ग्रुप पर लिखी 'त्रिवेणी'
विषय : नींद
नींद से बोझिल आँखें
आँखों में एक ख्वाब
ख्वाबों का है सिलसिला, सच भी ख्वाब सा लगता है
- सीमा कुमार
२३ मई २००६
**************************
विषय (आखिरी पंक्ति के लिये) : धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं
आँच बहुत है चूल्हे में रोटियों के लिए मगर
लाल आँखें देख आग का प्रतिबिंब मत समझना
धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं !
- सीमा कुमार
८ अगस्त २००६
विषय : नींद
नींद से बोझिल आँखें
आँखों में एक ख्वाब
ख्वाबों का है सिलसिला, सच भी ख्वाब सा लगता है
- सीमा कुमार
२३ मई २००६
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विषय (आखिरी पंक्ति के लिये) : धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं
आँच बहुत है चूल्हे में रोटियों के लिए मगर
लाल आँखें देख आग का प्रतिबिंब मत समझना
धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं !
- सीमा कुमार
८ अगस्त २००६
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