27.1.07

तेजल कृति का दूसरा जन्मदिन





तेज भरा हो तुममें तेजल
कृतियाँ हों तेरी अनमोल ।
आँखों में हो सुंदर सपने
और होठों पर मीठे बोल ।


रचना ऐसा कुछ, करना ऐसा कुछ,
जिसका नहीं हो कोई मूल्य ।
बन जाना तुम, इस सृष्टि की
तेज से भरी कृति अमूल्य ।
- सीमा
२७ जनवरी, २००७
* कल, २६ जनवरी '०७ को, मेरी बेटी तेजल कृति दो साल की हो गई । यहाँ लिखे कुछ शब्द उसके लिए तथा कुछ मेरे अंग्रेजी चिठ्ठे पर भी ।

23.1.07

शब्द-जाल

कविता -
शब्दों का ताना-बाना,
शब्दों का जाल ।


कल्पना के
हथकरघे पर
अक्षर - अक्षर से
शब्दों के
सूत कात,
जुलाहा बन
शब्दों के सूत से
वाक्यों का
कपड़ा बुन
और
दर्जी बन
एहसास की कैंची से
अनचाहे शब्द कतर
भावों की
सूई से सी कर
कवि
तैयार कर देता है
कविता का
मनोहारी वस्त्र;
कविता -
एक मोहक
श्ब्द-जाल ।

- सीमा
२८ अप्रैल, १९९५

10.1.07

चिठ्ठों की नई श्रृंखला

आप इस साल निफ्ट से जुड़े कुछ लेख लिखें। मसलन कैसे निफ्ट में
चयन होता है, कैसे कपड़े डिजाइन होते हैं, मास-प्रोड्कशन की तकनीक और डिजाइनर वियर
कपड़े बनाने की तकनीकियां कैसे अलग हैं। इस बारे में कोई जानकारी नहीं है अपने हिंदी
चिट्ठाजगत में!

निफ्ट में आयोजित एक फैशन शो

मैंने सोचा इस साल कविता के अलावा भी जो चिठ्ठे लिखने के बारे में सोचा था, तो इसी से शुरु करूँ । अनूप शुक्ला जी की बात भी रख लूँगी तथा अपना निजी अनुभव भी बाँटने का मौका मिलेगा । इसलिए अब मैं मेरी कृति पर अपने चिठ्ठों की नई श्रृंखला शुरु करूँगी जिसमें अनूप शुक्ला जी के सुझाव मुताबिक तथा इससे जुड़े विषयों पर लिखूँगी ।


इस नई श्रृंखला को शुरु करने से पहले इतना ही कहना चाहूँगी कि कपड़ों की एक अलग ही दुनियाँ है । आज कपड़े बनाने के अनगिनत तकनीक हैं; उन्हें सजा - सँवार कर, सिल कर, उपभोक्ता तक लाने के असीमित तरीके - कहीं दर्जी सिलता है तो कहीं थोक में लाखों की संख्या में बनाए जाते हैं । हमेशा कुछ न कुछ नया चलता रहता है इस दुनिया में । साथ ही चमक - दमक और फ़ैशन की रंग - बिरंगी दुनिया के पीछे बहुत मेहनत एवँ पसीना छुपा होता है जिनमें से कुछ पहलुओं को सामने लाने की मैं कोशिश करूंगी ।

अपनी टिप्पणियाँ एवँ सुझाव अवश्य दें ताकि मुझे मार्गदर्शन मिलता रहे और मैं आपकी रुचि मुताबिक एवँ जुड़े विषयों पर लिखती रहूँ ।

6.1.07

जाड़े की धूप


जाड़े की धूप
जैसे किसी प्यासे को
रेगिस्तान में
मीठा पानी मिल गया हो ।

सर्द रातों के बाद
ऐसी खिली
जाड़े की धूप
जैसे सूर्यमुखी ने
धीरे से
अपनी सुंदर,
बड़ी, पीली पंखुड़ियाँ
फैला ली हो ।

भागती - दौड़ती जिन्दगी
और वातानुकूलित कमरों के बाहर
जाड़े की धूप में बैठ
ऐसा लगा जैसे
बरसों से चैन की नींद
सोए नहीं;
पुकारने लगी
सुहानी धूप
अपनी गोद में
सुलाने को ।

जाड़े की धूप
जैसे
ममता का आँचल ।


- सीमा कुमार
६ जनवरी, २००७,
गुड़गाँव ।

5.1.07

शुभकामनाएँ

शुभकामनाएँ मेरी -
नव वर्ष के
नव प्रभात में
आशा का स्वर्णिम प्रभाकर
फैला जाए
उल्लास प्रभा ।
शोभायमान हो जाए धरती
उस प्रभाकर की कांति से ।
काली, अंधियारी,
नीरव निशा का
अंश मात्र भी
रहे न बाकी
जब आए प्रत्यूष मनोहर ।


इस नूतन वर्ष में कभी
गति अवरूद्ध न हो
जीवन की;
जीवन -
केवल धमनियों में रक्त
और ह्रुदय में
श्वास का ही नहीं
जीवन कर्म और कर्तव्य का भी,
उद्दम और उत्साह का भी ।


स्वर लेकर नए
यह वर्ष नवीन आए ।
अंत: करण में संगीत जगे,
हर शैल शिखर में गीत जगे,
और धरा के कण-कण में
सभी के लिए
अनुराग जगे ;
नव वर्ष के
नव प्रभात में
आशा के संग
सारा संसार जगे ।


- सीमा
(लिखित : ५ दिसम्बर, १९९७)

प्रकृति और पंक्षियों को अर्पित मेरी कृति

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