सन्नाटे की भी
अपनी एक आवाज होती है
जो बिना बोले भी
बहुत कुछ बोलती है,
पूछती है,
फुसफुसाती है,
गुनगुनाती है ।
अपने दोनों कानों को
दोनों हाथों से
बंद कर लो,
कुछ मत बोलो
और सुनो
सन्नाटे की सरसराहाट,
सन्नाटे की गूँज,
सन्नाटे की चीख ।
क्या अब भी
विश्वास नहीं होता
कि सन्नाटे की भी
अपनी एक आवाज होती है ?
- सीमा
१४ मई, १९९७
चा.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
प्रकृति और पंक्षियों को अर्पित मेरी कृति
प्रकृति और पंक्षियों को अर्पित - वस्त्रों ( टी-शर्ट्स ) के लिए मेरी कृति : वीडियो - प्रकृति और पंक्षियों से प्रेरित डिज़ाइन: और पढ़ें ... फ...
-
कविता संग्रह ‘पराग और पंखुड़ियाँ’ अब फ्लिपकार्ट और इन्फीबीम पर उपलब्ध मेरी कविता संग्रह ‘पराग और पंखुड़ियाँ’ अब फ्लिपक...
-
कविता - शब्दों का ताना-बाना, शब्दों का जाल । कल्पना के हथकरघे पर अक्षर - अक्षर से शब्दों के सूत कात, जुलाहा बन शब्दों के सूत से वाक्यों का क...
-
बहुत दिनों के बाद बाल-उद्यान पर मेरी खींची हुई कुछ नई तस्वीरें- देखें भोला बचपन . यह हैं जन्माष्टमी उत्सव के लिए स्कूल जाने के लिए तैयार ते...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें