कविता -
शब्दों का ताना-बाना,
शब्दों का जाल ।
कल्पना के
हथकरघे पर
अक्षर - अक्षर से
शब्दों के
सूत कात,
जुलाहा बन
शब्दों के सूत से
वाक्यों का
कपड़ा बुन
और
दर्जी बन
एहसास की कैंची से
अनचाहे शब्द कतर
भावों की
सूई से सी कर
कवि
तैयार कर देता है
कविता का
मनोहारी वस्त्र;
कविता -
एक मोहक
श्ब्द-जाल ।
- सीमा
२८ अप्रैल, १९९५
23.1.07
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12 टिप्पणियां:
nice imagination seema...i liked it very much...
u write good :)
खुब जाल बुना है आपने.
कविता से यह प्रकट होता है कि रचनाकार का संबंध फ़ैशन टेक्नोलॉजी से है . आखिर कबीर की रचनाओं में भी तो ताना-बाना जैसे शब्द और चदरिया बुनने के प्रसंग आते हैं .
बहुत खुब:
अहसासों की आँधी में,
भाव जब उठे दिल से
तब उन्हें सजाया है,
शब्दों की झिलमिल से.
मनोभाव की इस तरह से
कलकल सरिता बह रही है,
पेड़ की उस शाख पर बैठी
बुलबुल कविता कह रही है.
आपकी कविता की व्याख्या अत्यन्त सारगर्भित लगी।
snice ...
सुन्दर, अति सुन्दर!!!
Kyaa sach, jitna kuch likhaa, sonha samjhaa gaya ,gaaya bajaaya gaya sab shabdon ki jadugari tha, jisme bas kuch hathon ki safayi jaise ahsaas aur bhaav kahin kahin shabdon ko hee katarne bunanae ke liye kaam ayae.
Maaf kijiyega, main sachchayi aur itani kathor sachchayi se ittifaak nahi rakhta. Main to samajhta manta aur sonchata aya tha ki, Maun aur shabd, bhaav aur boli, anubhuti aur abhivyakti, gadhya ke javabon ke samane seena taan kar khade savalon ke hathiyaar liye koi hai to kavita ho jatee hogi.
Shabdon ka manohaari(hamesha..kaise?) vastra kuch bhi ho kavita nahee. shabdon se kahin adhik maun kavita likh deta hai.. keval shabd hi hote to kavita kavi ki, kavi ke maun kee na hokar shabdon kee hi rah jaati. Shabd hain hee kya abhivyakti kee mul ikayi bas, aur maun svayam siddha mahakavya...aseem...anant.
आप सभी को टिप्पणियों और आपके समय के लिए धन्यवाद ।
प्रियंकर : जब यह लिखा था तब फ़ैशन टेक्नोलॉजी से कोई संबंध नहीं था । यह उससे पहले लिखा था । संयोग कह लीजिए या कुछ और ..
उपस्थित : पहले मैं आपकी टिप्पणियों को हिन्दी में लिखना चाहूँगी (कहीं गलती हो तो बताएँ )
"क्या सच, जितना कुछ लिखा, सोचा समझा गया, गाया बजाया गया सब शब्दों की जुगाड़ी था, जिसमें कुछ हाथों के सफाई जैसा एहसास और भाव कहीं - कहीं शब्दों को ही कतरने बुनने के लिए काम आए ।
माफ कीजिएगा, मैं सच्चाई और इतनी कठोर सच्चाई से इत्तफ़ाक नहीं रखता । मैं तो समझता, सोचता और मानता आया था कि, मौन और शब्द, भाव और बोली, अनुभूति और अभिव्यक्ति, गद्य के जवाबों के सामने सीना तान कर खडे़ सवालों के हथियार लिए कोई है तो कविता हो जाती होगी ।
शब्दों का मनोहारी (हमेशा.. कैसे ?) वस्त्र कुछ भी हो कविता नहीं. शब्दों से कहीं अधिक मौन कविता लिख देती है... केवल श्ब्द ही होते तो कविता कवि की, कवि के मौन की ना होकर शब्दों की ही रह जाती. शब्द हैं ही क्या, अभिव्यक्ति की मूल इसलिए बस, और मौन स्वयं सिद्ध महाकाव्य .. असीम .. अनंत ।"
आपकी बात से सहमत हूँ कि "मौन कविता लिख देती है... केवल श्ब्द ही होते तो कविता कवि की, कवि के मौन की ना होकर शब्दों की ही रह जाती. "। परंतु मौन कविता होते हुए भी अभिव्यक्ति चाहती है .. और अभिव्यक्ति के उपरांत उसे हम कविता नाम देते हैं .. अभिव्यक्ति किसी रूप में हो ... सुंदर या असुंदर । 'मनोहारी' या 'मोहक' इसलिए क्योंकि कविता हम पढ़ते तभी हैं जब उसका स्वरूप हमें पसंद आता है .. चाहे उसके भाव, या अभिव्यक्ति का तरीका, या रूप, या कुछ और ..।
मैंने 'शब्द - जाल' में कुछ शब्दों का प्रयोग किया हि जिनकी काफ़ी अहमियत है इस कविता में जैसे "कल्पना", "एहसास", "भावों" .. । उनके बिना वास्तव में शब्दों का वस्त्र कुछ भी हो कविता नहीं । और जैसा कि आप स्वयं कह रहे हैं, शब्द हैं ही क्या, अभिव्यक्ति की मूल ... कई बार जिन भावों को शब्द दिया वह कविता बन जाते हैं तो कई बार जो 'अनकही' हैं, वही कविता है ।
वैसे जब मैंने 'शब्द - जाल' लिखा था, न तो यह पता था कि कविता क्या है.. न उसकी परिभाषा पता थी । आज भी जब मैं लिखती हूँ तो किसी परिभाषा में बँधकर नहीं .. मेरे लिए कविता अभिव्यक्ति का माध्यम है .. मालूम नहीं सही या गलत हूँ ...
मेरी प्रतिक्रिया को इतनी अहमियत देने के लिये धन्यवाद, पात्र नहीं थी, आपने अकारण इतना श्रम किया । बाकी कुछ जगह , (जैसे जुगाड़ी नहीं, जादूगरी, मौन कविता लिख देता है, देती है नहीं), मनोहारी वाली बात और बुनने भर जिम्मेदारी से मेरा वैचारिक मतभेद था, है और रहेगा भी, खुद अपनी कविताओं से भी-में भी । आपने देवनागरी करण किया, आगे से प्रयास यही रहेगा कि देवनागरी मे ही लिखा जाये । धन्यवाद ।
आपने सुधार किया उसके लिए धन्यवाद । देवनागरी में इसलिए लिखा ताकि शब्दों और भावों को समझने में आसानी हो ।
वैचारिक मतभेद किसी भी बात पर हो सकता है .. और फिर कविता और उसके भावों को समझने का सबका अपना तरीका और नजरिया होता है । अकारण कुछ नहीं । आपने इतना समय लगाया, और हमेशा ऐसी प्रतिक्रिया या टिप्पणियाँ नहीं मिलती जावाब देने के लिए :) ।
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