6.6.07

तितली का कोना

एक तितली
उड़ी थी अपने बागानों से
शहर की ओर
और खो गई
चमचमाती रोशनी
और रोशनी के चारों ओर
मंडराते पतंगों के बीच ।

फूल-पत्तों के रंग नहीं थे,
तितली के पीछे भागते
बच्चे नहीं थे ।
हाँ, धूल और धुँए से
मलिन होते उसके
रंग-बिरंगे पंख थे
किसी बहुमंजिली इमारत की
मुंडेर पर बैठे
एकाकीपन का साथ था,
और एक सावाल
कि आखिर किसकी,
किस चीज की
तलाश में आई थी वह
शहर तक
मीलों की उड़ान भरकर
रूक-रूक कर,
थक-हार कर,
जाने क्या-क्या
दाँव पर लागा कर... ।

क्या उसे अपने
बागानों का रास्ता
फिर से कोई
बता सकता था ?
या फिर
क्या वह
ढ़ूँढ़ सकती थी,
बना सकती थी
कोई नया उपवन
फूल-पत्तियों से भरा,
रंगों से भरा,
खिलखिलाते बच्चों से भरा,
एक अलग कोना
इन बहुमंजिली इमारतों के बीच ?


- सीमा कुमार
६ जून, २००७

11 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

भावनात्मक कृति।

बहुत सुन्दर रचना है, मन को छूती हुई! बधाई स्वीकारें।

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

सीमा जी,
आपकी यह रचना बेहद प्रभावित करती है।

एक तितली
उड़ी थी अपने बागानों से
शहर की ओर
और खो गई

मीलों की उड़ान भरकर
रूक-रूक कर,
थक-हार कर,
जाने क्या-क्या
दाँव पर लगा कर... ।

रंगों से भरा,
खिलखिलाते बच्चों से भरा,
एक अलग कोना
इन बहुमंजिली इमारतों के बीच ?

संवेदित हुआ..बहुत बधाई आपको।

*** राजीव रंजन प्रसाद

सुनीता शानू ने कहा…

बहुत गहरे भाव छोड़ती है आपकी रचना...गाँव से शहर की रोशनी हो या भारत से विदेश की यात्रा तितली जब अपना बाग छोड़ देती है तो उसे दर्द के सिवा कु़छ हांसिल नही होता...
एक बहुत प्यारा संदेश देती है आपकी रचना...
एक सावाल
कि आखिर किसकी,
किस चीज की
तलाश में आई थी वह
शहर तक
मीलों की उड़ान भरकर
रूक-रूक कर,
थक-हार कर,
जाने क्या-क्या
दाँव पर लागा कर... ।

सुनीता(शानू)

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

अच्छे बिम्ब हैं

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

अच्छे बिम्ब हैं

Udan Tashtari ने कहा…

आज के पलायनवादी युग को चित्रित करती आपकी रचना बहुत हृदय स्पर्शी है, बधाई. लौटने का मार्ग भी तो खुद ही को खोजना होगा, कोई क्या बता पायेगा.

ghughutibasuti ने कहा…

सीमा जी, अब तितली के पास अपना खुद का एक सुन्दर कोना बनाने के सिवाय और कोई चारा नहीं है । उसे अपने ही रंगो से एक रंगीन कोना बनाना ही होगा । फिर बच्चों की खिलखिलाहट अपने आप ही सुनाई देने लगेगी ।
घुघूती बासूती

Rising Rahul ने कहा…

नया उपवन खोजने के लिए तो तितली को या तो गाँव जाना होगा या फिर किसी बाग़ मे , सुना है की हर शहर मे एक कंपनी बाग़ होता है और तक़रीबन कहानियों और उपन्यासों मे भी . सो अगर तितली गाँव ना जाना चाहे तो वो शहर के कंपनी बाग़ की तलाश मे निकल सकती है , हो सकता है की वहाँ उसे कुछ बच्चे भी मिल जाएँ जिन्हे वो अपने पीछे पाए और उड़ उड़ कर उन्हे थकाने का परमानंद प्राप्त कर सके .

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर कृति!!
आभार

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा!

...* Chetu *... ने कहा…

VERY NICE..!

प्रकृति और पंक्षियों को अर्पित मेरी कृति

प्रकृति और पंक्षियों को अर्पित - वस्त्रों ( टी-शर्ट्स ) के लिए मेरी कृति : वीडियो - प्रकृति और पंक्षियों से प्रेरित डिज़ाइन:  और पढ़ें ... फ...