अंत और अनंत क्या, उर की अभिलाषा क्या ? मन क्यों स्थिर नहीं, जीवन की परिभाषा क्या ? प्रश्न भी अनंत हैं अनकहे हैं जवाब कभी हैं ही नहीं, कहीं अधूरे हैं । मौन लगता अचल है । बस अपनी अंतर्रात्मा का साथ ही चिरंतन है, बाकी या तो इच्छा है लालसा है या न मिटने वाली चाह है ।
मोह क्या है, माया है क्या ? सत्य क्या है, साया है क्या ? फिर अनगिनत सवाल, या तो असंख्य जवाब, या फिर कोई भी नहीं कहीं सिर्फ़ गति है कोई ठहराव नहीं और कहीं बस ठहराव ही है कोई गति, कोई हलचल नहीं ।
यह शब्द हैं या भाव ? या उलझन ? अभिव्यक्ति की असमर्थता ?