रिश्तों का भँवर
और मैं
कागज़ की एक
छोटी सी नाव ।
सीमा
१२ सितम्बर, १९९९
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3 टिप्पणियां:
क्यों?
छोटी सी क्यों?
पढ़कर अच्छा लगा।
थोड़ी तुक भिड़न्ती कर रहे हैं,
सांसों का सफर,
और हम,
चक्का जाम किए,
नक्सली गांव।
its realy good
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