विषय : गुरूर
एहसास तक नहीं था मुझे अपने होने का
नाज़ तुम्हारे साथ होने का जरूर था
तुम मेरे हुए, अपने आप पर गुरूर आ गया
सीमा
१२ अगस्त '०६
11.8.06
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2 टिप्पणियां:
अच्छा लिखा है, सीमा जी. बहुत बढियां.और त्रिवेणियां पढवायें...
समीर लाल
बहुत बढिया ।
अपनी एक रुबाई याद आ रही है :
तुम को देखा तो चेहरे पे नूर आ गया
हौले हौले ज़रा सा सुरूर आ गया
तुम जो बाँहों में आई लजाते हुए
हम को खुद पे ज़रा साअ गुरूर आ गया ।
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