सन्नाटे की बात पर कुछ पंक्तियाँ और भी :-
सन्नाटे को
कर लूँ बंद
मैं मुठ्ठी में
बार - बार क्यों
ऐसी ख्वाहिश होती है ?
अन्धकार पर
कर लूँ कब्जा
मन की क्यों
ऐसी कोशिश होती है ?
- सीमा
१७/०२/०३, दि.
24.3.06
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3 टिप्पणियां:
बहुत बढिया है।
बधाई।
मेरी भी दो पंक्तियां;
सन्नाटा भी मेरी
अपनी कहानी सुनाता है,
उनकी आहट भी जो आये
तो शरमा के छुप जाता है।
--समीर लाल
nice one :)
wah! nice one
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