ठहरे हुए लम्हों में
अरमानों का ठहर जाना;
तनहाई में, बेबसी में
आँसुओं का ठहर जाना;
कैसा इत्तफाक है
ग़मगीन लम्हों में
दिल के किसी कोनें में ही
गमों का ठहर जाना ।
सीमा
१४ अप्रैल, १९९६
30.3.06
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5 टिप्पणियां:
काफ़ी भावुक रचना है, सीमा जी.
समीर लाल
बहुत सुन्दर ठहराव का वर्णन है।
तो मुझे टिप्पणी भी करनी है तो ये लीजिये,बुरा मत मानियेगा, इस ठहरे हुए पानी मे पहला कंकड हम मार रहे हैं।
यहाँ तो ठहराव चाहिये तो भी दिल- दिमाग नही मानता और बस दौडे जाता है!
“चाहूंगा यही की लम्हे ठहरें
लेकिन सिर्फ हसीन लम्हे...
चाहूंगा यही की आंसू ठहरें
लेकिन सिर्फ मेरे नहीं...”
ये मैने अपनी लाइफ में पहली बार कविता-शेर जो भी लिखा हो वो प्रस्तुत किया है!!
प्रतिकृआओं के लिए धन्यवाद । उन लम्हों में लिखा गया था जब सब कुछ ठहरा सा लगता है ... एक भाव-शून्यता के साथ । बस कुछ शब्द ही साथ थे ।
Sochaa ke hum bhii isii Tehar jaane pe kuch kehthe chale jaathe hai,
ye khata meri ke mai Tehar gaya, tez raftaar se beh jaane ki adaa jo seekha hotaa, to na kehtaa zindagii mein zindagii kam hai...
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