Orkut गुलज़ार ग्रुप पर लिखी 'त्रिवेणी'
विषय : नींद
नींद से बोझिल आँखें
आँखों में एक ख्वाब
ख्वाबों का है सिलसिला, सच भी ख्वाब सा लगता है
- सीमा कुमार
२३ मई २००६
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विषय (आखिरी पंक्ति के लिये) : धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं
आँच बहुत है चूल्हे में रोटियों के लिए मगर
लाल आँखें देख आग का प्रतिबिंब मत समझना
धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं !
- सीमा कुमार
८ अगस्त २००६
8.8.06
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3 टिप्पणियां:
"धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं" ??
बहुत खूब !
धुआँ मेरी आँखों में आग का नहीं....nice one...
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