22.11.12

बादल का एक टुकड़ा

मैं
बादल का
एक टुकड़ा हूँ
और तुम
बरखा की शीतल बूँदें |
मैं
खाली - खाली सा
बादल का एक टुकड़ा
और तुम्हारा प्यार
बादल टुकडे को
भर देने वाली,
उसे उसका स्वरूप देने वाली
जल की असंख्य बूँदें |
मैं
बादल का
एक छोटा सा टुकड़ा
और तुम
मेरा पूरा आसमान,
मैं
सीमाओं से निर्मित
और तुम अनंत आकाश

- सीमा कुमार
१७/६/९९

* यह कविता 'हिन्द-युग्म' पर प्रथम प्रकाशित हुई और वहां पढ़ी जा सकती हैं | 

3 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/2012-13.html

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत प्यारी रचना.....

अनु

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://www.parikalpnaa.com/2013/01/blog-post_7800.html

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