स्वराज से सुराज तक
विभाजन से मिलाप तक
मेरी मातृभूमि का अभी
लंबा सफर है बाकी।
तंदूर से उत्थान तक
अशिक्षा से ज्ञान तक
कई अंधेरे कोनों में
उजाला फैलाना है बाकी।
तय किए साठ बरस
सफ़र लंबा था मगर
ऊँचे-नीचे रास्तों पर अभी
अनन्त का सफर है बाकी।
मिलती गई कई मंज़िलें
ऊँचे रहे हम उड़ते
सोने की चिड़िया की फिर भी
बहुत उड़ान अभी है बाकी।
- सीमा कुमार
१४ अगस्त , २००७
* यह कविता 'हिन्द-युग्म' पर प्रथम प्रकाशित हुई और वहां पढ़ी जा सकती हैं |
1 टिप्पणी:
मिलती गई कई मंज़िलें
ऊँचे रहे हम उड़ते
सोने की चिड़िया की फिर भी
बहुत उड़ान अभी है बाकी।
सच है
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